पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत

पियाजे का संज्ञात्मक विकास का सिद्धांत

मनोविज्ञान के विभिन्न प्रकार के सिद्धांत हैI इनके सभी सिद्धांतो में से एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है जिसे पियाजे के संज्ञात्मक विकास के सिद्धांत के आम से भी जानते हैI आज हम पियाजे के इसी संज्ञात्मक विकास के सिद्धांत पर चर्चा करेंगेI
जिन पियाजे स्विट्ज़रलैंड के एक चर्चित मनोवैज्ञानिक थेI इनका जन्म ९ अगस्त १८९६  में आ थाI स्विट्ज़रलैंड के इस नोवैज्ञानिक ने ज्ञानात्मक के क्षेत्र में एक नई ज्वाला पैदा कर  थीI  ज्ञानात्मक विकास के क्षेत्र में यदि किसी ने सबसे अधिक रूप से आदान किया है तो वह कोई और नहीं बल्कि जीन पियाजे ही थेI उन्होंने बताया कि छोटे बच्चों के बुद्धि का विकास कहीं और से नहीं बल्कि उनके जन्म के साथ ही जुड़ा होता हैI प्रत्येक बालक सहज कार्य को करने से संबंधित कुछ योग्यताएं जैसे चूसना, किसी वस्तु को पकड़ना, किसी वस्तु तक पहुंचना, किसी वस्तु को देखना, आदि अपने साथ लेकर ही जन्म लेता हैI जन्म से ही एक बालक में किसी कार्य को करने की क्षमता होती हैI जैसे जैसे वह बालक बड़ा होता है, उसमें क्रियाओं को करने की क्षमता बढ़ती है और वह बुद्धिमान बनता जाता हैI

पियाजे के संज्ञात्मक विकास के सिद्धांत के सप्रेय :-

केंद्रीय जनित अवस्था- 0 से 2 वर्ष:-

जन्म के उपरांत एक शिशु में केवल उसके आसपास की चीजों को समझने की क्षमता होती हैI वह किसी भी वस्तु का ज्ञान उसे देखकर, सुनकर अथवा स्पर्श कर कर प्राप्त करता है और धीरे-धीरे यह उन शब्दों का उच्चारण करना भी सीखता हैI अपने माता-पिता एवं जिसने वह बार-बार देखता है उनको देखकर वह मुस्कुराता है और अपरिचितों को देखकर वह घबराता हैI 0 से 2 वर्ष तक की आयु में  उसे इन सभी चीजों का ज्ञान हो जाता है. इसे इंद्रिय जनित अवस्था कहते हैंI
पूर्व संक्रियात्मक अवस्था- 2 से 7 वर्ष:-
इस अवस्था में एक बालक खिलौने इत्यादि के माध्यम से गुणों को सीखता हैI इसी आयु को खिलौनों से खेलने की आयु कहा जाता हैI इस आयु में एक शिशु छोटी छोटी चीजों से सीखता है जैसे की चीजों के रंगों की पहचान करना, गिनती को गिनना अथवा हल्के भारी वस्तुओं का ज्ञान करता हैI यही वह आयु होती है जिसमें बालक अपने माता पिता की आज्ञा को सुनता है और उसका पालन भी करता हैI
 स्थूल / मूर्त संक्रिया त्मक अवस्था: 7  से 12 वर्ष
इस वर्ष में बालक वस्तुओं के बीच समानता एवं समानता बतलाता हैI इस आयु में बालक को सही अथवा गलत का ज्ञान हो जाता हैI बालक भासाओ इत्यादि  का ज्ञान भी इसी आयु में आकर करता हैI

औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था: 12 वर्ष के बाद –
12 वर्ष के बाद बालक चिंतन करने के योग्य हो जाता हैI इस उम्र में बालक तार्किक चिंतन की अवस्था के ज्ञान से भी जाना जाता हैI बालक के मानसिक योग्यताओ का विस्तार भी इसी अवस्था में होता हैI
जिन पियाजे का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान:-
जीन पियाजे का शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा ही दुर्लभ योगदान रहा हैI जिन पियाजे ने बताया है कि एक शिक्षक ही है जो एक बालक की समस्याओं का निदान कर सकता हैI बालक को की शिक्षा के लिए एक शिक्षक ही उचित वातावरण को तैयार कर सकता ह
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